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Wednesday 24 June 2020

चीन देश नास्तिक क्यों

चीन देश नास्तिक क्यों

नास्तिकता

चीन दुनिया का इकलौता देश है, जहां की सरकार ही आधिकारिक तौर पर नास्तिक है । चीनी समाज़ में एक नास्तिक ही राजनीति या सिविल सर्विसेज में जाने के लिए कुछ अनिवार्य गुणों में से एक है । अगर आपको महान कंफ्यूशियस के बारे में गहन जानकारी न हो तो आप सिविल सर्विसेज़ क्रैक भी नही कर पाएँगे। चीनी समाज़ में इस नास्तिकता की जड़ें जमाई थीं, चीनी शिक्षक, लेखक, राजनीतिज्ञ और फिलॉसफर कंफ्यूशियस ने जिन्होंने 551–479 BC के दौरान चीनी समाज पर अपने विचारों की बहुत गहरी छाप छोड़ी जो आज भी अमिट है ।

धर्म

चीन की 61% आबादी शुद्ध नास्तिक है, 29% कहते हैं वो धार्मिक नही हैं, और बचे हुए सिर्फ 10% ही धार्मिक हैं। चीन का संविधान 1971 के बाद से ही चीन के सभी नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने की आज़ादी देता है और उनको अधिकारों की रक्षा करता है।

क्योंकि वहां पर साम्यवादी सरकार है जो धर्म को अफीम समझती है। मानवीय मूल्यों के विकास में धर्म को एक कम्युनिस्ट बाधक समझता है। धर्म को भेदभाव और शोषण का प्रमुख हथियार या टूल भी समझा जाता है। ऐसे चीनी सरकार धर्म को नियंत्रित करती है, विज्ञान और तर्क को बढ़ावा देती है। यह भी सच है धर्म और ईश्वर के कॉन्सेप्ट इंसान के दिमाग में बचपन से ही डालने शुरू कर दिया जाता है। इससे इंसान को लगने लगता है कि यह कृत्रिम नहीं है। साथ ही उसे जीवन में सबसे मूल्यवान समझने लगता है। धर्म और ईश्वर को लालच, पुनर्जन्म और डर से भी जोड़ा जाता है। इसलिए एक लालची, पुनर्जन्म में यकीन
करने वाला और डरपोक इंसान इससे मुक्त होकर सोच नहीं पाता। जब उसे बचपन में प्रोत्साहित और बढ़ावा ही नहीं मिलेगा, तो वह नास्तिक ही रहेगा। क्योंकि नास्तिक वह है जो ईश्वर और धर्म को असली नहीं मानता। ऐसे में चीन में धार्मिक स्थलों को बनाना, पब्लिकली धार्मिक व्यवहार करना, राजनीति में धर्म का हस्तक्षेप आदि को हतोत्साहित किया जाता है। इसलिए चीन में नास्तिकों की संख्या अधिक है।


नैतिकता

लोग भगवान पर विश्वास इसलिए करते हैं ताकि जो महिमा इंसान भगवान की सुनता है उन कार्यो को वो भगवान पूरा करे।

कोई भी कार्य इस नहीं जो भगवान नहीं कर सकता। भगवान के शब्दकोश में इम्पॉसिबल शब्द नहीं है।


फिर भी वो कार्य कौन कौन से हैं जिनकी उम्मीद इंसान भगवान से रखता है..


अंधे को आंख,कोढ़िन को काया, बाँझन को पुत्र,निर्धन को माया आदि ।

मानसिक शांति।
जैसे सुखों की उम्मीद एक आम आदमी भगवान से रखता है।

पर क्या आरती,भजन,ज्योत जगाने से किसी बहुत दुखी जीव के यह कार्य सफल हुए??


जिनके हुए वो आज भी आस्तिक हैं और जिनको नहीं हुए वो आज भी धक्के ही खा रहे हैं या फिर नास्तिक ही हो गए हैं और बचे खुचे नास्तिकता की और कदम बढ़ा रहे हैं।


और जो आस्तिक भी हैं वो भी नास्तिक ही हैं वे आस्तिकता में भी औपचारिकता करते हैं और अगर उनसे पूछो भगवान क्या कर सकता है ? तो जवाब आता है नहीं ऐसा नहीं कर सकता ।


जिसका आम उदाहरण समाज मे फैला हुआ कि भगवान पाप नाश नहीं कर सकता ,कर्म तो भोगकर ही समाप्त होते हैं।


जबकि कबीर साहेब कहते हैं,


जबही सत्यनाम हृदय धरो,भयो पाप को नाश।जैसे चिंगारी अग्नि की पड़ी पुराने घास।


चीन के साथ बजी ऐसा ही हुआ जहां बौद्ध धर्म फैला हुआ था,जिसमे हठ योग अर्थात समाधि लगाकर साधना की जाती है।एक आम इंसान सारा दिन काम करके कैसे समाधि लगाए और जिन्होंने समाधि लगाई उन्हें भी वो लाभ नहीं हुए जिनकी आशा वो रखते थे जिस कारण लोग नास्तिक होते चले गए।



जबकि भगवान तो आज भी वही है जो पहले था जरूरत है तो बस उसको जान लेने की..आप भी जान सकते हैं